लोक प्रशासन - A UGC-CARE Listed Journal

Association with Indian Institute of Public Administration

Current Volume: 16 (2024 )

ISSN: 2249-2577

Periodicity: Quarterly

Month(s) of Publication: मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर

Subject: Social Science

DOI: https://doi.org/10.32381/LP

300

लोक प्रशासन भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की एक सहकर्मी समीक्षा वाली त्रैमासिक शोध पत्रिका है ! यह UGC CARE LIST (Group -1 ) में दर्ज है ! इसके अंतर्गत लोक प्रशासन, सामाजिक विज्ञान, सार्वजनिक निति, शासन, नेतृत्व, पर्यावरण आदि से संबंधित लेख प्रकाशित किये जाते है !

EBSCO

अध्यक्ष एवं सम्पादक
श्री एस. एन. त्रिपाठी

महानिदेशक, आई. आई. पी. ए. 
नई दिल्ली


सह-सम्पादक
सपना चड्डा

सह-आचार्या, संवैधानिक तथा प्रशासनिक कानून,
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली 


सम्पादक मंडल
के.के. सेठी

अध्यक्ष, मध्यप्रदेश क्षेत्रीय शाखा (भारतीय लोक प्रशासन संस्थान) 


डा0 शशि भूषण कुमार

 आचार्य, हाजीपुर, बिहार 


प्रो. श्रीप्रकाश सिंह

आचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली 


शुभा सर्मा

भा. प्र.से., प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, ओडिशा सरकार 


डा0 साकेत बिहारी 

 सह-आचार्य, विकास अध्ययन, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली


श्री अमिताभ रंजन

कुलसचिव, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली 


पाठ सम्पादक
स्नेहलता

 भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली


Volume 16 Issue 3 , (Jul-2024 to Sep-2024)

सम्पादकीय

By: प्रो. अशोक विशनदास

Page No : v-vi

Read Now

साइबर सुरक्षा एवं भारत सरकार की नीतियों का अध्ययनः अवसर एवं चुनौतियां

By: लुके कुमारी , विजय दीक्षित

Page No : 1-16

Abstract
साइबर सुरक्षा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के रणनीतिक विषयों में से एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना पर राज्य और गैर-राज्य प्रायोजित साइबर हमलों में निरंतर वृद्धि हुई है। भारत ने रक्षा, आर्थिक, संचार, परिवहन, ऊर्जा, स्वास्थ्य आदि राष्ट्रीय महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की है, जिन्हें किसी भी साइबर हमलों से सुरक्षित किया जा सके। इसलिए भारत सरकार के छह मंत्रालयों और प्रधान मंत्री के शीर्ष कार्यालय ने सुरक्षा के लिए सक्रिय जिम्मेदारियां ली हैं। हाल के एक या दो दशकों में भारत सरकार ने नई राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीतियों, कानून, मानकों, संस्थानों, सहयोग और पदों जैसे राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक के विकास सहित कई उपाय किए हैं। भारतीय विधानमंडल किसी भी क़ानून में साइबर अपराध को परिभाषित नहीं करता है। यहांँ तक कि 2000 का सूचना प्रौद्योगिकी कानून, जो साइबर अपराध से संबंधित है, इस शब्द को परिभाषित नहीं करता है। हालाँकि सामान्य तौर पर, साइबर अपराध इंटरनेट या कंप्यूटर के माध्यम से या उसकी सहायता से की गई किसी भी आपराधिक गतिविधि को संदर्भित करता है।

Authors
लुके कुमारी : सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग, भारती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
विजय दीक्षित : विजय दीक्षित, शोधार्थी, एस. डी (पी जी) कॉलेज, गाजियाबाद।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.1

Price: 251

डेटा की गोपनीयता एवं सुरक्षाः मुद्दे और चुनौतियाँ

By: अभय प्रसाद सिंह , कृष्ण मुरारी

Page No : 17-31

Abstract
भूमंडलीकरण के इस दौर में जहाँ दुनियाँ के देशों में उत्तरोतर संपर्क ने उनके अंतर्संबंधों को संबल दिया है वहीं इन्टरनेट के माध्यम से डेटा अंतरण ने डेटा सुरक्षा को संवेदनशील बनाया है। इससे छुटकारा पाने में साइबर सुरक्षा एवं व्यक्तिगत डेटा और गैर-व्यक्तिगत डेटा नियमन महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभर कर सामने आए हैं जिसके औपचारिक और अनौपचारिक आयाम विचारणीय हैं। साइबर सुरक्षा में डिजिटल नेटवर्क और प्रोग्राम को डिजिटल हमलों से बचाने के लिए प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं का उपयोग करता है जिससे डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा बरकरार रहे। सम्प्रति, साइबर सुरक्षा का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि यह निजता एवं संसाधन के व्यक्तिगत डेटा स्वामित्व के क्षेत्र में अतिक्रमण करता है। इसके अतिरिक्त लोक कल्याणकारी योजनाओं में लोगों के व्यक्तिगत और निजी आकड़ों को डिजिटल माध्यमों से संग्रहित किया जाने लगा ताकि सरकारी नीतियों को अधिक जनोपयोगी बनाया जा सके। इस आलेख में व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता एवं सुरक्षा और वित्तीय संस्थायों में प्रयुक्त डेटा से संबंधित चुनौतियों, मुद्दों एवं न्यायिक और नीतिगत समाधानों का शोध अन्वेषण प्रस्तुत किया गया है।

Authors :
अभय प्रसाद सिंह : प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय।
कृष्ण मुरारी : असिस्टेंट प्राफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, शहीद भगत सिंह महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.2

Price: 251

भारत में साइबर अपराध: प्रवृत्तियाँ, विश्लेषण एवं समाधान

By: चंदन सिंह , प्रदीप कुमार सिंह

Page No : 32-51

Abstract
आज के आधुनिक डिजिटल युग में प्रौद्योगिकी के प्रसार ने हमारे जीने, काम करने और बातचीत करने के तरीके में क्रांति ला दी है। हालांकि बढ़ी हुई संयोजकता और डिजिटलीकरण के लाभों के साथ-साथ साइबर अपराध में एक व्यापक और उभरती चुनौती भी है। साइबर अपराध में डिजिटल चैनलों के माध्यम से की जाने वाली अवैध गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है जो दुनिया भर में व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां प्रस्तुत करती है। वित्तीय धोखाधड़ी और पहचान की चोरी से लेकर ऑनलाइन उत्पीड़न और डेटा उल्लंघनों तक साइबर अपराधी व्यक्तिगत लाभ के लिए डिजिटल तंत्र की कमजोरियों का फायदा उठाते हैं जिससे आर्थिक नुकसान, प्रतिष्ठा की क्षति और सामाजिक क्षति होती है। इस शोध पत्र का उद्देश्य साइबर अपराध की प्रवृत्तियों का व्यापक विश्लेषण करना
है जो डिजिटल खतरों की विकसित हों रही प्रकृति और समाज के विभिन्न क्षेत्रों पर तथा उसके प्रभाव पर प्रकाश डालना है। यह शोध- पत्र बच्चों, महिलाओं और ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी के खिलाफ साइबर अपराध के रूझानों की जाँच करके,इन रूझानों को चलाने वाले अंतर्निहित कारकों को स्पष्ट करने और साइबर खतरों को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए संभावित रणनीतियों का पता लगाने का प्रयास करता है।

Authors
डाॅ. चन्दन सिंह : सहायक आचार्य, लोक प्रशासन विभाग, शासकीय महाविद्यालय, उकलाना, हिसार।
डाॅ. प्रदीप कुमार सिंह : सहायक आचार्य, लोक प्रशासन विभाग, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, विश्वविद्यालय, लखनऊ।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.3

Price: 251

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और अभिशासनः नारी सुरक्षा के विशेष संदर्भ में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के अनुप्रयोग से न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार का अध्ययन

By: आमना मिर्जा , भावनाथ झा

Page No : 52-63

Abstract
अभिशासन (Governance) द्वारा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के अनुप्रयोग कर महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्याय तंत्रों में सुधार एक अभूतपूर्व उदाहरण है। इसका अत्यंत व्यापक रूप इस अध्ययन में विश्लेषित किया गया हैं। आईसीटी साधनों जैसे कि निगरानी कैमरे, मोबाइल एप्लिकेशन, और डेटा विश्लेषण प्लेटफॉर्म का उपयोग करके न्याय संगठनों ने महिलाओं की सुरक्षा
के क्षेत्र में सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रयास किया है। दिल्ली पुलिस द्वारा लाॅन्च किया गया ‘हिम्मत ऐप’ प्रयुक्त संदर्भ में काफी प्रासंगिक माना जा सकता है। इस अध्ययन के माध्यम से, प्रौद्योगिकी को पारंपरिक न्याय तंत्रों में एकीकृत करने की जटिल गतिविधियों और प्रभावों का गहन अवलोकन किया गया है ताकि महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

Authors :
डाॅ. आमना मिर्जा : सह आचार्य, श्यामा प्रसाद मुखर्जी काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
डाॅ. भावनाथ झा : सहायक आचार्य, आत्माराम सनातन ध्ार्म काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.4

Price: 251

कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं साइबर सुरक्षाः सुशासन के परिप्रेक्ष्य में

By: मीना रानी

Page No : 64-77

Abstract
इंटरनेट सेवाओं के तेजी से विकास के कारण साइबर हमलों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साइबर खतरे अधिक परिष्कृत होते जा रहे हैं और स्वचालन, सुरक्षा को अप्रभावी बना देता है। पारंपरिक साइबर सुरक्षा दृष्टिकोण का नए साइबर खतरों से लड़ने पर सीमित प्रभाव पड़ता है। इसलिए, हमें नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता साइबर अपराध से निपटने में सहायता कर सकती है। प्रस्तुत शोध पत्र में साइबर सुरक्षा में प्रयुक्त की जा रही कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीकें एवं उनकी क्षमताओं की विवेचना का प्रयास किया गया है। साथ ही यह शोध कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित तकनीकों की सीमाओं पर भी प्रकाश डालता है। यह शोध इस बात पर चर्चा करता है कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता साइबर खतरों की पहचान, उनकी भविष्यवाणी और डेटा संचालित द्वारा इन मूल्यों की रक्षा करने का अवसर प्रस्तुत करता है।
 

Author :
मीना रानी : सहायक आचार्य, लोक प्रशासन विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.5

Price: 251

साइबर अपराध और युवाः भारतीय सन्दर्भ में विश्लेषण

By: प्रवीन कुमार झा , विनायक राय , संगीता

Page No : 78-91

Abstract
तकनीकी प्रगति ने समाज में महत्वपूर्ण सुधार लाए हैं, लेकिन उन्होंने नए प्रकार के आपराधिक अवसर भी पैदा किए हैं। हाल के वर्षो में साइबर अपराध और साइबर सुरक्षा के मुद्दे तेजी से बढ़े हैं, जिससे जांँच की एक नई उपशाखा (Cyber Crime Cell) को जन्म दिया है। यह शोध कार्य साइबर अपराधों के अर्थ और संभाव्यता तथा लक्षित पीड़ितों, मुख्य रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर युवाओं का गहन विश्लेषण प्रदान करता है। आज सोशल मीडिया हमारे जीवन का इतना अहम् हिस्सा बन गया है कि इसके बिना जीना लगभग असंभव है। भारतीय युवा सोशल नेटवर्किं ग पर जितना समय और ऊर्जा खर्च करते हैं, उससे उनके जीवन में इसका महत्व तो पता चलता है, लेकिन क्या उन्हें सोशल मीडिया पर संवेदनशील जानकारी साझा करने की गंभीरता का एहसास है, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है। यह शोध यह जानने का प्रयास करता है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं के जीवन में किस तरह से प्रवेश कर रही हैं और उनके जीवन और समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है, जिससे साइब अपराध को बढ़ावा मिलता है। इन सब को समझने के बाद, यह शोध पत्र यह भी सुझाव देता है कि इन्हें कैसे रोका और प्रतिबंधित किया जा सकता है।

Authors :
प्रवीन कुमार झा : प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, शहीद भगत सिंह काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय।
विनायक राय : दिल्ली विश्वविद्यालय।
संगीता : प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, शहीद भगत सिंह काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.6

Price: 251

भारत में साइबर सुरक्षा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा संरक्षण

By: लक्ष्मी परेवा

Page No : 92-100

Abstract
जब सूचना प्रबंधन के क्षेत्र की बात आती है, तो साइबर सुरक्षा एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। वर्तमान समय की सबसे बड़ी कठिनाइयों में से एक है अपनी जानकारी की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना। हालाँकि, साइबर सुरक्षा का सटीक वर्णन करना कठिन है, इस तथ्य के बावजूद कि यह एक महत्वपूर्ण धारणा है। इसके अतिरिक्त, अतीत में, इसे निगरानी, खुफिया जानकारी एकत्र करना, सूचना विनिमय और गुमनामी जैसी अन्य अवधारणाओं के साथ भ्रमित किया गया है। हाल के वर्षों में लगातार बढ़ते आईसीटी बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा करना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है, और ऐसा करने के लिए एक डेटा सुरक्षा ढाँचा व्यावहारिक रूप से आवश्यक है। इंटरनेट में हमेशा बदलाव होता रहता है, यही इसके पीछे का कारण है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का बुनियादी ढाँचा एक आवश्यक घटक है क्योंकि यह सभी आवश्यक राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे के बीच संपर्क लिंक के रूप में कार्य करता है। जैसे.जैसे अधिक से अधिक देश ई.गवर्नेंस और ई.कॉमर्स पहल शुरू करते हैं, एक विश्वसनीय साइबर सुरक्षा बुनियादी ढाँचे मॉडल की आवश्यकता स्पष्ट हो जाती है। आज के सूचना युग में, लगातार विकसित हो रहे आईसीटी बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिए साइबर सुरक्षा वास्तुकला की आवश्यकता पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। किसी भी देश के बुनियादी ढांचे की रीढ़ डेटा और इलेक्ट्रॉनिक संचार के अन्य रूपों के आदान-प्रदान और प्राप्त करने की प्रणाली है। पहले एक ठोस साइबर सुरक्षा बुनियादी ढांचे की स्थापना के बिना दुनिया में कहीं भी ई-गवर्नेंस या ई-कॉमर्स संचालित करना असंभव है। यह लेख इस बुनियादी ढाँचे का सारांश देगा और फिर हम जो उम्मीद कर सकते हैं उसके आधार पर भारतीय संदर्भ में इससे निकलने वाले पैटर्न और अनिवार्यताओं के बारे में बात करेंगे।

Author :
डा. लक्ष्मी परेवा : सहायक आचार्या, लोक प्रशासन विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.7

Price: 251

साइबर-अपराध भारत के साइबर परिदृश्य में एक उभरता हुआ खतरा

By: शालिनी प्रसाद , अभय कुमार

Page No : 101-116

Abstract
आज की दुनिया में सुरक्षा की अवधारणा तेजी से बदलती जा रही है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के अनियंत्रित प्रसार ने शांति और सुरक्षा बनाए रखने में कई चिंताएँ पैदा कर दी हैं। साइबर-अपराध अब एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा चिंता है और साइबर स्पेस में उन खतरों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो सभी को प्रभावित करते हैं। इस संबंध में, इस लेख का उद्देश्य साइबर अपराध की अवधारणाओं और अर्थ को समझना है। इसके अलावा, शोध का उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर ‘‘साइबर अपराध‘‘ के प्रतिकूल प्रभाव की जांच करना है। यह उन खतरों और चुनौतियों का वर्णन करता है जिनका भारत का साइबर स्पेस सामना कर रहा है, या भविष्य में सामना करने की संभावना है। यह लेख इस बात का पता लगाने की कोशिश करेगा कि भविष्य में साइबर अपराध एक बड़ा खतरा कैसे बन सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पहलें अपनाई गई हैं। यह अध्ययन उन विभिन्न पहलों और नीतियों का विश्लेषण करेगा, जिन्हें भारत सरकार ने राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर इन खतरों और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए वर्षों से तैयार किया है।

Authors :
डॉ शालिनी प्रसाद : सहायक प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, इलाहबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज।
डॉ अभय कुमार : सहायक प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.8

Price: 251

शिक्षा और साइबर सुरक्षाः निहितार्थ एवं चुनौतियाँ

By: एकता मीना

Page No : 117-127

Abstract
शिक्षा में प्रौद्योगिकी के बढ़ते एकीकरण के साथ, साइबर सुरक्षा दुनिया भर के शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई है। साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताओं को सक्रिय रूप से संबोधित करके, शैक्षणिक संस्थान एक सुरक्षित और अनुकूल शिक्षण वातावरण बनाया जा सकता हैं जो डिजिटल युग के छात्रों में नवाचार एवं सफलता को बढ़ावा देगा। यह शोध पत्र शिक्षा में साइबर सुरक्षा को मजबूत
करने के लिए चुनौतियों और रणनीतियों की जाँच करता है। इसके अतिरिक्त यह पत्र शैक्षणिक संस्थानों पर साइबर खतरों के प्रभाव का पता लगाता है, शिक्षा क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों की पहचान करता है, और साइबर जोखिमों को कम करने और डिजिटल शिक्षण वातावरण को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सिफारिशों को प्रस्तुत करता है।

Author :
डॉ. एकता मीना : सहायक आचार्या, लोक प्रशासन विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.9

Price: 251

स्मार्ट सिटी व साइबर सुरक्षा: भारतीय संदर्भ में एक अवलोकन

By: रिंकी

Page No : 128-136

Abstract
वर्तमान परिपेक्ष्य में शहरीकरण की बढ़ती चुनौतियों के समाधान के लिए स्मार्ट सिटी के विकास को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जाता है। यह माना जाता है कि स्मार्ट सिटी संकल्पना को अपनाने से कुशल व बेहतर शहरी वातावरण का निर्माण किया जा सकता है जिससे सामुदायिक कल्याण को बढ़ावा देने के साथ-साथ आधुनिकता के लाभों का अनुभव किया जा सकता है। सूचना व संचार प्रौद्योगिकियों के बिना स्मार्ट सिटी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा और क्लाउड कंप्यूटिंग के समावेशन के द्वारा स्मार्ट सिटी के विकास को समर्थन दिया जा रहा है। परंतु स्मार्ट सिटी के उद्देश्यों को प्राप्त करने की राह में हमारे सामने साइबर असुरक्षा के रूप में बहुत सी चुनौतियाँ उपस्थित हैं। जो स्मार्ट सिटी के बुनियादी ढांँचे की सुरक्षा व अखंडता को प्रभावित करती हैं। इसी परिपेक्ष्य में भारत में स्मार्ट सिटी के संदर्भ में साइबर सुरक्षा का विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है। जिससे स्मार्ट सिटी मिशन के सामने आने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों और चुनौतियों को संबोधित करते हुए कुछ समाधान सुझाएं जा सके। भारत में स्मार्ट सिटी के लिए योजना, डिजाइन और कार्यान्वयन के सभी स्तरों पर साइबर सुरक्षा के मुद्दे को ध्यान में रखने की आवश्यकता है। सुरक्षित शहर व साइबर सुरक्षा नीति व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। इसके लिए कानून, जनता, प्रक्रिया व तकनीक का एक अच्छा संयोजन स्थापित किए जाने की आवश्यकता है।

Author :
डॉ. रिंकी : सहायक प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.10

Price: 251

भारत में गोपनीयता की अवधारणा का विकास: साइबर युग के विशेष सन्दर्भ में

By: अक्षत पुष्पम , रजनीश राज

Page No : 137-157

Abstract
आज भूमंडलीकरण के दौर  में  इन्टरनेट के विकास ने मानव जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने का काम किया है। लेकिन आज सब कुछ जहाँ बस एक क्लिक के दूरी पर मौजूद है वहीं साइबर युग के विकास ने कई नई चिंताओं और चुनौतियों को भी जन्म दिया है जिनमें प्रमुख रूप से गोपनीयता का प्रश्न शामिल है। भारत के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की माने तो आए दिन भारत में साइबर अपराध की संख्या बढ़ती जा है। अतः बढ़ रही साइबर आपराधिक घटनाओं के मद्देनजर यह पता लगाना महत्वपूर्ण हो जाता है कि संग्रहित डेटा का उपयोग केवल उसी उद्देश्य से किया जा रहा है जिसके लिए यह एकत्र किया गया था। इसी संदर्भ में यह आलेख भारत में गोपनीयता और निजता की अवधारणा के विकास को समझते हुए उसके आम जनता पर पड़े प्रभाव का उल्लेख करता है।

Authors :
अक्षत पुष्पम : सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग , भारती महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
रजनीश राज : शोध छात्र, राजनीति विज्ञान, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.11

Price: 251

साइबर स्पेस, किशोर अवस्था में महिला उत्पीड़न, संस्थानिक चुनौतियाँ और उपाय /दिल्ली और चयनित एनसीआर क्षेत्रों का एक अध्ययन

By: संजीव कुमार

Page No : 158-175

Abstract
साइबर स्पेस एक तरफ जीवन को बहुत सरल बना रहा है, दूसरी तरफ साइबर आधारित आपराधिक घटनाओं में तीव्र वृद्धि हुई है। साइबर स्पेस न सिर्फ जानकारी, शिक्षा, पहचान, व्यापार, मनोरंजन उपलब्ध कराने में मदद करता है, बल्कि वर्चुअल सेक्स और हत्याएं जैसी अमानवीय घटनाओं का माध्यम भी बन रहा है। साइबर विशेषज्ञों एवं अन्य शोध के अनुसार कोविड-19 के बाद महिलाओं के विरुद्ध अपराधों
में लगातार वृद्धि हुई है। मुख्य रूप से किशोर लड़कियोके खिलाफ होने वाले इंटरनेट आधारित साइबर अपराध जैसे अपमानजनक टिप्पणी करना, अश्लील संदेश भेजना, जानबूझ कर महिलाओं के फोटो को नग्नावस्था में संलग्न करना आदि है। यह लेख महिलाओं के प्रति होने वाले इस प्रकार के अपराध के कारण, उसकी प्रवृत्ति और पड़ने वाले प्रभाव को जानने एवं समझने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग से सहयोग प्राप्त शोध-कार्य पर आधारित है। इस शोध-कार्य का शीर्षक “महिलाओं के लिए साइबर स्पेस में चुनौतियाँ 2020-21 में दिल्ली और एनसीआर के चुनिंदा क्षेत्रों का एक अध्ययन” था। इस शोध के तहत दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कुल 13 जिलों का अध्ययन किया गया है। इन जिलों से साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त उत्तरदाताओं के अनुभवों एवं आंकड़ो का गहन विश्लेषण किया गया है। साथ ही साइबर संबंधित अपराधों के रोकथाम के लिए सरकार के द्वारा किए गए कानूनी प्रावधानो और उसकी प्रभावशीलता का भी विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है।

Author :
डॉ संजीव कुमार : सहायक प्राध्यापक, श्यामा प्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.12

Price: 251

सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना प्रणाली में साइबर सुरक्षा एवं डेटा गोपनीयता की चुनौतियाँ एवं समाधान

By: शशि भूषण

Page No : 176-196

Abstract
वर्तमान डिजिटल युग में, रिमोट सेंसिंग (RS) और भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (GIS) प्रौद्योगिकियों का उपयोग बढ़ता जा रहा है, जो डेटा संग्रह, विश्लेषण और भंडारण की नई संभावनाएँ प्रस्तुत करता है।हालांकि, इन प्रौद्योगिकियों के बढ़ते उपयोग के साथ साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता की चिंताएँ भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं। सुदूर संवेदन अथवा रिमोट सेंसिंग (RS) और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के एकीकरण से स्थानिक डेटा विश्लेषण में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिससे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए शक्तिशाली उपकरण उपलब्ध हुए हैं। हालांकि, इस एकीकरण के साथ-साथ कई साइबर सुरक्षा जोखिम भी उत्पन्न होते हैं। यह पेपर RS और GIS से संबंधित साइबर सुरक्षा चुनौतियों की जाँच करता है, जिसमें डेटा की अखंडता, उपलब्धता और गोपनीयता शामिल हैं।
     यह शोध-पत्र विभिन्न प्रकार के साइबर खतरों और कमजोरियों की पहचान करता है, जिनसे RS और GIS प्रणालियाँ प्रभावित हो सकती हैं। इनमें डेटा ब्रीच, साइबर हमले, मैलवेयर, और अन्य सुरक्षा खतरों का विश्लेषण शामिल है। इसके अलावा, यह अध्ययन उन मौजूदा सुरक्षा उपायों का मूल्यांकन करता है जिन्हें इन खतरों से बचने के लिए लागू किया जा सकता है। इसमें डेटा एन्क्रिप्शन, सुरक्षित प्रमाणीकरण प्रक्रियाएँ, और नियमित साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण जैसे उपाय शामिल हैं।
    यह शोध-पत्र उभरती तकनीकों और उनके सुरक्षा पर प्रभावों पर भी चर्चा करता है। नई तकनीकों का विकास, जैसे कि मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा को और मजबूत बना सकता है, लेकिन इन तकनीकों के उपयोग में भी नई चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं। केस स्टडीज और सुझावों के माध्यम से, यह शोध-पत्र RS और GIS प्रणालियों की साइबर सुरक्षा की गहन समझ प्रदान करता है और संबंधित जोखिमों को कम करने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ पेश करता है।
        अंततः, यह निष्कर्ष निकाला गया है कि RS और GIS में साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करना न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से बल्कि नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। इस दिशा में निरंतर शोध और उन्नत तकनीकों का विकास आवश्यक है, ताकि इन प्रणालियों की सुरक्षा को और अधिक मजबूत बनाया जा सके।

Author :
डाॅ. शशि भूषण : वैज्ञानिक, पर्यावरण शोध एवं ग्रामीण विकास संस्थान, पटना।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.03.13

Price: 251

ग्रंथ सूची

By: मीना मिश्रा

Page No : 197-200

Price: 251

Instruction to the Author

आलेख में सामग्री को इस क्रम में व्यवस्थित करेंः आलेख के शीर्षक, लेखकों के नाम, पते और ई-मेल, लेखकों का परिचय, सार संक्षेप, (abstract) संकेत शब्द, परिचर्चा, निष्कर्ष/सारांश, आभार (यदि आवश्यक हो तो) और संदर्भ सूची । 

सारसंक्षेपः सारसंक्षेप (abstract) में लगभग 100-150 शब्द होने चाहिए, तथा इसमें आलेख के मुख्य तर्को का संक्षिप्त ब्यौरा हो। साथ ही 4-6 मुख्य शब्द (Keywords) भी चिन्हित करें । 

आलेख का पाठः आलेख 4000-6000 शब्दों से अधिक न हो, जिसमें सारणी, ग्राफ भी सम्मिलित हैं। 

टाइपः कृपया अपना आलेख टाइप करके वर्ड और पीडीएफ दोनों ही फॉर्मेट में भेजे । टाइप के लिए हिंदी यूनिकोड का इस्तेमाल करें, अगर आपने हिंदी के किसी विशेष फ़ॉन्ट का इस्तेमाल किया हो तो फ़ॉन्ट भी साथ भेजे, इससे गलतियों की सम्भावना कम होगी, हस्तलिखित आलेख स्वीकार नहीं किए जाएंगे। 

अंकः सभी अंक रोमन टाइपफेस में लिखे। 1-9 तक के अंको को शब्दों में लिखें, बशर्ते कि वे किसी खास परिमाण को न सूचित करते हो जैसे 2 प्रतिशत या 2 किलोमीटर। 

टेबुल और ग्राफः टेबुल के लिए वर्ड में टेबुल बनाने की दी गई सुविधा का इस्तेमाल करें या उसे excel में बनाएं। हर ग्राफ की मूल एक्सेल कॉपी या जिस सॉफ़्टवेयर मैं उसे तैयार किया गया हो उसकी मूल प्रति अवश्य भेजे  सभी टेबुल और ग्राफ को एक स्पष्ट संख्या और शीर्षक दें। आलेख के मूल पाठ में टेबुल और ग्राफ की संख्या का समुचित जगह पर उल्लेख (जैसे देखें टेबुल 1 या ग्राफ 1) अवश्य करें। 

चित्राः सभी चित्र का रिजोलुशन कम से कम 300 डीपीआई/1500 पिक्सेल होना चाहिए। अगर उसे कही और से लिया गया हो तो जरूरी अनुमति लेने की जिम्मेदारी लेखक की होगी।

वर्तनीः किसी भी वर्तनी के लिए पहली और प्रमुख बात है एकरूपता। एक ही शब्द को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से नहीं लिखा जाना चाहिए। इसमें प्रचलन और तकनीकी सुविधा दोनों का ही ध्यान रखा जाना चाहिए।

• नासिक उच्चारण वाले शब्दों में आधा न् या म् की जगह बिंदी/अनुस्वार का प्रयोग करें। उदाहरणार्थ, संबंध के बजाय संबंध, सम्पूर्ण की जगह संपूर्ण लिखें। 

• अनुनासिक उच्चारण वाले शब्दों में चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करें। मसलन, वहाँ, आये , जाएंगे, महिलाएं, आदि-आदि। कई बार सिर्फ बिंदी के इस्तेमाल से अर्थ बदल जाते हैं। इसलिए इसका विशेष ध्यान रखें, उदाहरण के लिए हंस और हँस। 

• जहाँ संयुक्ताक्षरों मौजूद हों और प्रचलन में हों वहाँ उन संयुक्ताक्षरों का भरसक प्रयोग करें। 

• महत्व और तत्व ही लिखें, महत्व या तत्व नहीं। 

• जिस अक्षर के लिए हिंदी वर्णमाला में अलग अक्षर मौजूद हो, उसी अक्षर का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए, गए गयी की जगह गए, गई लिखें। 

• कई मामलों में दो शब्दों को पढ़ते समय मिलाकर पढ़ा जाता है उन्हें एक शब्द के रूप् में ही लिखें। उदाहरण के लिए, घरवाली, अखबारवाला, सब्जीवाली, गाँववाले, खासकर, इत्यादि। 

• पर कई बार दो शब्दों को मिलाकर पढ़ते के बावजूद उन्हें जोड़ने के लिए हाइफन का प्रयोग होता है। खासकर सा या सी और जैसा या जैसी के मामले में। उदाहरण के लिए,एक-सा, बहुत-सी, भारत-जैसा, गांधी-जैसी, इत्यादि। 

• अरबी या फारसी से लिए गए शब्दों में जहाँ मूल भाषा में नुक्ते का इस्तेमाल होता है। वहाँ नुक्ता जरूर लगाएं। ध्यान रहें कि क, ख, ग, ज, फ वाले शब्दों में नुक्ते का इस्तेमाल होताहै। मसलन, कलम, कानून, खत, ख्वाब, खैर, गलत, गैर इलरजत, इजाफा, फर्ज, सिर्फ। 

उद्धरणः पाठ के अंदर उद्धृत वाक्यांशों को दोहरे उद्धरण चिह्न (’ ’) के अंदर दें। अगर उद्धृत अंश दो-तीन वाक्यों से ज्यादा लंबा  हो तो उसे अलग पैरा में दें। ऐसा उद्धृत पैराग्राफ अलग नजर आए इसके लिए उसके पहले बाद में एक लाइन का स्पेस दें और पूरा पैरा को इंडेंट करें और उसके टाइप साईज को छोटा रखें। उद्धृत अंश में लेखन की शैली और वर्तनी में कोई तबदीली या सुधार न करें । 

पादटिप्पणी और हवाला (साईटेशन):  सभी पादटिप्प्णियाँ और हवालों (साईटेशन) के लिए मूल पाठ में 1,2,3,4,..... सिलसिलेवार संख्या दे और आलेख के अंत में क्रम में दे। वेबसाईट के मामले में उस तारीख का भी जिक्र करे जब अपने उसे देखा हो। मसलन, पाठ 1, मनोरंजन महंती, 2002, पृष्ठ और हर हवाला के लिए पूरा संदर्भ आलेख के अंत में दें।

सन्दर्भ: इस सूची में किसी भी संदर्भ का अनुवाद करके न लिखें, अथार्थ संदर्भो को उनकी मूल भाषा में रहने दें। यदि संदर्भ हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं के हो तो पहले हिन्दी वाले संदर्भ लिखें तथा इन्हें हिन्दी वर्णमाला के अनुसार, और बाद में अंग्रेजी वाले संदर्भ को अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सूचीबद्ध करें । 

•ए.पी.ए. स्टाइल फोलो करें। 

•मौलिकताः ध्यान रखें कि आलेख किसी अन्य जगह पहले प्रकाशित नहीं हुआ हो तथा न ही अन्य भाषा में प्रकाशित आलेख का अनुवाद हो। यानी आपका आलेख मौलिक रूप से लिखा गया हो। 

•कोशिश होगी कि इसमें शामिल ज्यादातर आलेख मूल रूप से हिंदी में लिखे गए हो । लेखकों से अपेक्षा होगी कि वे दूसरे किसी लेखक के विचारों और रचनाओं का सम्मान करते हुए ऐसे हर उद्धरण के लिए समुचित हवाला/संदर्भ देंगे ।अकादमिक जगत के भीतर बिना हवाला दिए नकल या दूसरों के लेखन और विचारों को अपना बताने (प्लेजियरिज्म) की बढ़ती प्रवृत्ति देखते हुए लेखकों का इस बारे मे विशेष ध्यान देना होगा । 

•समीक्षा और स्वीकृतिः प्रकाशन के लिए भेजी गयी रचनाओं पर अंतिम निर्णय लेने के पहले संपादक मडंल दो समीक्षकों की राय लेगा, अगर समीक्षक आलेख मे सुधार की माँग करें तो लेखक को उन पर गौर करना होगा।

•संपादन व सुधार का अंतिम अधिकार संपादकगण के पास सुरक्षित हैं। 

•कापीराइटः प्रकाशन का कापीराइट लेखक के पास ही रहेगा पर हर रूप में उसका प्रकाशन का अधिकार आई आई पी ए के पास होगा। वे अपने प्रकाशित आलेख का उपयोग अपनी लिखी किताब या खुद संपादित किताब मे आभार और पूरे संदर्भ के साथ कर सकते हैं। किसी दूसरे द्वारा संपादित किताब में शामिल करने की स्वीकृति देने के पहले उन्हें आई आई पी ए से अनुमति लेनी होगी।
 

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