लोक प्रशासन - A UGC-CARE Listed Journal
Association with Indian Institute of Public Administration
Current Volume: 16 (2024 )
ISSN: 2249-2577
Periodicity: Quarterly
Month(s) of Publication: मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर
Subject: Social Science
DOI: https://doi.org/10.32381/LP
लोक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना में किशोर न्याय प्रशासन
By : सुमिता मुदगल
Page No: 162-172
Abstract
भारतीय शासन व्यवस्था में राज्य मनुष्य की उस समुदाय से संबंधित संकल्पना है जो एक निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक निश्चित भूभाग पर परस्पर संगठित होकर अपनी एक संप्रभु सरकार स्थापित करती है। मानव जीवन के कल्याण के क्षेत्र में राज्य की भूमिका को विभिन्न विचारधाराओं में से किसी ने राज्य को एक दमनकारी संस्था के रूप में परिभाषित किया तो किसी ने राज्य को एक आदर्श राज्य के रूप में प्रस्तुत किया। प्राचीन भारत की रामराज्य धारणा का विकसित रूप वर्तमान में लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में दृष्टिगत होता है। नैतिक संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त ऐसे राज्य का मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों का चहुँमुखी विकास और कल्याण करना है। इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक सिद्धांतों में चिन्हित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तथा समाज कल्याण प्रशासन की महत्वता को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने सन् 1985 में कल्याण मंत्रालय स्थापित किया जिसे 1998 में परिवर्तित कर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के रूप में पुर्नस्थापित किया गया। सरकार द्वारा कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विधिक प्रयास भी किए गए जिसमें से एक प्रयास किशोर न्याय (बालकों की सुरक्षा एवं देखभाल) अधिनियम, 2015 के रूप में परिलक्षित होता है जो बालकांे की सुरक्षा एवं कल्याण के लिए स्थापित विभिन्न संस्थाओं के रूप में समाज में किशोर न्याय प्रशासन की वकालत करता है। उक्त अधिनियम में वर्णित विभिन्न सिद्धांत तथा कानूनी प्रावधान बालकों की देखरेख एवं सुरक्षा को लेकर राज्य की लोक कल्याणकारी भूमिका को उजागर करते हैं।
Author
सुमिता मुदगल: शोधार्थी, लोक प्रशासन विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर।
DOI: https://doi.org/10.32381/LP.2023.15.03.11