लोक प्रशासन - A UGC-CARE Listed Journal
Association with Indian Institute of Public Administration
Current Volume: 16 (2024 )
ISSN: 2249-2577
Periodicity: Quarterly
Month(s) of Publication: मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर
Subject: Social Science
DOI: https://doi.org/10.32381/LP
संसदीय लोकतंत्रा एवं विपक्ष : एक सैद्धांतिक उपागम
By : जया ओझा
Page No: 71-86
Abstract
समकालीन समय में संसद एक बहुआयामी संस्था के रूप में परिलक्षित होती है। केवल भारत में ही नहीं, अपितु संसदीय राजनीतिक व्यवस्था वाले अन्य देशो में भी यही स्थिति है। संसद के बहुत से कृत्य हैं, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण कार्य जनता का प्रतिनिधित्व करना तथा देश के लिए सरकार का गठन करना है। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में विपक्ष के अस्तित्व का अत्यंत महत्व है तथा यह स्वयं लोकतंत्र का सर्वाधिक विशिष्ट गुण है। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत वाद, विमर्श तथा विमति की व्यवस्था अंतर्निहित होती है, जिसमें संवाद के लिए निरंतर अवसर एवं अनुकूलता बनी रहती हैं । एक गाँव की पंचायत से लेकर संसद तक सभी संस्थाएँ संवाद तथा विचार-विमर्श के परिणामस्वरूप ही उत्पन्न होती है।अतएव संसदीय लाके तंत्र में एक स्थिर तथा सामथ्र्यशील विरोधी पक्ष उतना ही आवश्यक है, जितनी कि एक स्थिर सरकार। विपक्ष के द्वारा ही संसदीय लोकतंत्र में विचार-विमर्श, वाद, विवाद तथा संवाद संभव होता है। यद्यपि यह देखा गया है कि संसदीय प्रणाली के अंतर्गत किसी भी प्रकार की दलीय प्रणाली व्याप्त हो परन्तु वहाँ विपक्ष सदैव मह्त्वपूर्व रहा है। ए॰ एल॰ लावेल के अनुसार “किसी भी दलीय प्रणाली की सफलता विपक्ष की वैधानिक मान्यता पर आधारित होती है”।प्रस्तुत आलेख संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की उत्पत्ति, उपस्थिति एवं उसकी उपादेयता के सैद्धांतक दृष्टिकोढ़ पर आधारित है। इसके अतिरिक्त यह विभिन्न दलीय प्रणालियों में भी विपक्ष के विविध स्वरूपों का विश्लेषण प्रसतुत करता है।
Author :
जया ओझा : पीएचडी शोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय।
DOI: https://doi.org/10.32381/LP.2023.15.02.5