लोक प्रशासन - A UGC-CARE Listed Journal
Association with Indian Institute of Public Administration
Current Volume: 16 (2024 )
ISSN: 2249-2577
Periodicity: Quarterly
Month(s) of Publication: मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर
Subject: Social Science
DOI: https://doi.org/10.32381/LP
वन संसाधन, श्रेणीकरण और विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह (पीवीटीजी)
By : कमल नयन चौबे
Page No: 87-103
Abstract
श्रेणीकरण या कैटेगराइजेशन आधुनिक समय की महत्त्वपूर्ण परिघटना है। भारत में भी जनगणना के साथ जनसंख्या को विभिन्न श्रेणियों में बाँटने की प्रक्रिया ज्यादा व्यवस्थित रूप से आरंभ हुई। अमूमन यह माना जाता है कि श्रेणीकरण से राज्य को विभिन्न समूहों के बारे में कल्याणकारी नीतियाँ बनाने में आसानी होती है। बहुत से समूह खुद को गाले बंद करने और संसाधनों पर अपना हक जताने के लिए इन श्रेणियों का उपयोग करते रहे हैं। लेकिन यह भी माना जाता है कि जनसंख्या का श्रेणीकरण राज्य को विभिन्न समूहों का नियंत्रण करने में सहायता उपलब्ध कराता है। प्रस्तुत आलेख भारत के संबसे वंचित समूहों में से एक पीवीटीजी (पार्टिकुलरली वलनरबे ल ट्राइबल ग्रुप्स या विशेष रूप से कमजारे जनजाति समूह) समूह की संरचना तथा इसके अंतर्गत आने वाली जनजातियों के जीविका और पहचान की सुरक्षा के लिए जद्दोजहद और इस संदर्भ में राज्य की भूमिका की पड़ताल करता है। डोंगरिया कोंध आदिवासियों के नियमगिरी संघर्ष के वृतातं के माध्यम से इस आलेख में इन समूहों के संघर्ष में कानून, नागरिक समाज और राज्य की भूमिका की पड़ताल की गयी है। आलेख यह तर्क देता है कि पीवीटीजी समूहों की भलाई के लिए बहुस्तरीय काम करने की आवश्यकता है, किन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अपने जीविका और सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने की उनकी स्वायत्तता को मान्यता दी जाए, और इसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
Author :
कमल नयन चौबे : लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह काॅलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं।
DOI: https://doi.org/10.32381/LP.2023.15.02.6