लोक प्रशासन - A UGC-CARE Listed Journal
Association with Indian Institute of Public Administration
Current Volume: 16 (2024 )
ISSN: 2249-2577
Periodicity: Quarterly
Month(s) of Publication: मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर
Subject: Social Science
DOI: https://doi.org/10.32381/LP
भारतीय लोकतंत्रा, संरचनात्मक असमानता और मुफ्तखोरी संस्कृति
By : पंकज लखेरा
Page No: 17-37
Abstract
16 जुलाई 2022 को अपने एक भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने मुफ्तखोरी संस्कृति या उनके ही शब्दों में कहें तो रेवाड़ी संस्कृति की आलाचे ना की और कहा कि यह देश के विकास के लिए खतरनाक होगी। वह बुन्देलखंड एक्सप्रेसवे के उद्घाटन अवसर पर जनता को संबोधित कर रहे थे। इसके बाद इस तरह के गलत व्यवहार को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई। अदालत ने मामले को देखने के लिए सभी हितधारको को शामिल करते हुए एक विशेष समिति बनाने का फैसला किया, लेकिन बाद में मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भजे दिया। अक्टूबर 2022 में चुनाव आयोग ने सभी पार्टियों द्वारा भरे जाने के लिए एक मानक पोरफार्मा जारी किया, जिसमें बताया गया कि वे अपने चुनावी वादों को कैसे पूरा करेंगे। हालाँकि, कई विपक्षी दलों ने इस आधार पर चुनाव आयोग के कदम की आलाचे ना की कि यह उनके लोकतांत्रिक अधिकार का उल्लंघन होगा। ऐसी ही घटना 2013 में हुई थी जब सुब्रमण्यम बनाम तमिल नाडु मामले में सुप्रीम कार्टे ने कहा था कि हालांकि मुफ्त वितरण को भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है, लेकिन पार्टियों को अपने वादों के पीछे का तर्क बताना होगा और उन्हें वही वादे करने का आदेश दिया जिन्हें पूरा किया जा सके। लेकिन, इस बार यह मुद्दा प्रधानमंत्री ने उठाया। इसने आवश्यक कल्याणकारी सेवाओं और मुफ्त वस्तुओ के रूप में सार्वजनिक धन की बर्बादी के बीच अंतर पर एक नई बहस को जन्म दिया। (साहू, घोष, चैरसिया, 2022) हमारे विचार में, हमारे माननीय प्रधान मंत्री द्वारा उठाई गई यह बहस केवल सार्वजनिक धन के विवेकपूर्ण उपयागे तक सीमित नहीं है। यह हमारे समाज के कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के माध्यम से लाके तंत्र को मजबूत करने के बारे में एक प्रासंगिक सवाल भी उठाता है। समय का सवाल यह है कि क्या केवल मुफ्त वस्तुओं के वितरण से इन वर्गों को सार्थक तरीके से मदद मिलेगी या हमारे समाज से संरचनात्मक असमानताओं को कम करके इन वर्गों का सशक्तिकरण संभव है? क्या ये मुफ्त उपहार हमारे लाके तंत्र को मजबूत करते हैं यालंबे समय में इसे कमजोर कर देंगे ?
Author :
पकंज लखेरा : सहायक प्रोफेसर, राजनीति शास्त्र विभाग, स्वामी श्रदानन्द काॅलेज दिल्ली, विश्वविद्यालय दिल्ली।
DOI: https://doi.org/10.32381/LP.2023.15.02.2