लोक प्रशासन - A UGC-CARE Listed Journal

Association with Indian Institute of Public Administration

Current Volume: 16 (2024 )

ISSN: 2249-2577

Periodicity: Quarterly

Month(s) of Publication: मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर

Subject: Social Science

DOI: https://doi.org/10.32381/LP

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लोक प्रशासन भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की एक सहकर्मी समीक्षा वाली त्रैमासिक शोध पत्रिका है ! यह UGC CARE LIST (Group -1 ) में दर्ज है ! इसके अंतर्गत लोक प्रशासन, सामाजिक विज्ञान, सार्वजनिक निति, शासन, नेतृत्व, पर्यावरण आदि से संबंधित लेख प्रकाशित किये जाते है !

EBSCO

अध्यक्ष एवं सम्पादक
श्री एस. एन. त्रिपाठी

महानिदेशक, आई. आई. पी. ए. 
नई दिल्ली


सह-सम्पादक
सपना चड्डा

सह-आचार्या, संवैधानिक तथा प्रशासनिक कानून,
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली 


सम्पादक मंडल
के.के. सेठी

अध्यक्ष, मध्यप्रदेश क्षेत्रीय शाखा (भारतीय लोक प्रशासन संस्थान) 


डा0 शशि भूषण कुमार

 आचार्य, हाजीपुर, बिहार 


प्रो. श्रीप्रकाश सिंह

आचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली 


शुभा सर्मा

भा. प्र.से., प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, ओडिशा सरकार 


डा0 साकेत बिहारी 

 सह-आचार्य, विकास अध्ययन, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली


श्री अमिताभ रंजन

कुलसचिव, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली 


पाठ सम्पादक
स्नेहलता

 भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली


Volume 16 Issue 4 , (Oct-2024 to Dec-2024)

सम्पादकीय

By: प्रो. अशोक विशनदास

Page No : v-vi

Read Now

शिक्षा पर नवीन शिक्षण दृष्टिकोणों के प्रभाव का आकलनः एक समीक्षा

By: जगदीप सिंह , अक्षय राज शर्मा

Page No : 1-13

Abstract
दुनिया भर में कई शैक्षिक प्रणालियों में नवीन शिक्षण दृष्टिकोणों का उपयोग तेजी से लोकप्रिय हो गया है। यह समीक्षा पत्र शिक्षा पर नवीन शिक्षण दृष्टिकोणों के प्रभाव का मूल्यांकन करता है। विश्लेषण मौजूदा साहित्य की समीक्षा पर आधारित है, जो छात्रों के सीखने के परिणामों और शैक्षणिक उपलब्धि पर नवीन शिक्षण प्रथाओं के प्रभाव पर केंद्रित है। यह शोध पत्र समस्या-आधारित शिक्षा, मिश्रित शिक्षा, गेमीफिकेशन और फ़्लिप सीखने जैसी विभिन्न पद्धतियों की जाँच करता है। यह अध्ययन, छात्र प्रेरणा, जुड़ाव और महत्वपूर्ण सोच कौशल को बढ़ाने में नवीन शिक्षण दृष्टिकोणों के सकारात्मक प्रभावों की पहचान करता है। यह नवीन शिक्षण दृष्टिकोणों को प्रभावी ढंग से लागू करने में शिक्षक प्रशिक्षण और निरंतर व्यावसायिक विकास के महत्व पर भी प्रकाश डालता है। निष्कर्ष बताते हैं कि अभिनव शिक्षण विधियों में स्कूलों में शिक्षण और सीखने की गुणवत्ता में सुधार करने की क्षमता है। हालांकि, छात्र परिणामों में सुधार के लिए इन दृष्टिकोणों के दीर्घकालिक प्रभाव और स्थिरता का मूल्यांकन करने के लिए और शोध की आवश्यकता है।

Authors
डॉ. जगदीप सिंह,
सहायक प्राध्यापक - व्यावसायिक प्रबंधन अध्ययन विभाग, क्रिस्तु जयंती कॉलेज, बेंगलुरु, कर्नाटक।
अक्षय राज शर्मा, पीएचडी स्कॉलर, कंप्यूटर विज्ञान और आईटी विभाग, राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.1

Price: 251

भारतीय संविधान के पचहत्तर वर्ष: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

By: संतोष कुमार सिंह

Page No : 14-31

Abstract
किसी भी देश का संविधान एक दिन की उपज नहीं होता है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि संविधान एक ऐतिहासिक विकास का परिणाम होता है। अतएव भारतीय संविधान के आधुनिक और विकसित स्वरूप को समझने के लिए ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान अनिवार्य है। भारतीय संविधान, अपने निर्माताओं की दूरदर्शिता का जीवंत प्रमाण है। इसने शासन, सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास की जटिलताओं तथा चुनौतियों के बीच राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है। सटीकता और लगन के साथ तैयार किए गए इस आधारभूत दस्तावेज ने भारत की सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय विरासत के विविधता से परिपूर्ण ताने-बाने को एक साथ बुना है। भारत के संविधान ने लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक न्याय, स्वतंत्रता और समानता की आधारशिला को सशक्त किया है। हमारे संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्र भारत के जिस संविधान का निर्माण किया है, उसमें भारत की प्राचीन संस्कृति के सिद्धान्तों और मूल्यों के प्रत्येक आयाम को स्पर्श किया है। अतः भारत का संविधान हर कालखंड में जनहित की कसौटी पर खरा उतरने के साथ-साथ अपनी निरंतरता, उपयोगिता और प्रासंगिकता को सदैव सिद्ध किया है। भारत अपने संविधान के 75 वर्ष ( 26 नवम्बर, 1949 - 26 नवम्बर, 2024) पूर्ण होने पर पर्व मना रहा है। इस दृष्टि से भारतीय संविधान की गरिमापूर्ण यात्रा का विश्लेषणात्मक अध्ययन करना अनिवार्य हो जाता है।

Author
संतोष कुमार सिंह,
असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, रानी धर्म कुँवर राजकीय महाविद्यालय दल्लावाला - खानपुर, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.2

Price: 251

महिलाएँ, पंचायत और आरक्षणः एक विश्लेषण

By: रिंकी

Page No : 32-38

Abstract
वर्तमान संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण विषय स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी को लेकर देखा जा सकता है। स्थानीय स्तर पर शासन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने में 73वें संविधान संशोधन की भूमिका के महत्त्व को स्वीकार किया जाता रहा है। जिसके अंतर्गत स्थानीय स्तर पर महिलाओं की शासन में भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की गई है। समय-समय पर पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण को लेकर सकारात्मक व नकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किए जाते रहें हैं। इस संदर्भ में इस पेपर के अंतर्गत यह देखने का प्रयास किया गया है कि इतने वर्षों के पश्चात भी क्या वास्तव में इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित् हो पाई है या महिलाएँ अभी भी इस क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक व पितृसत्ता के प्रभावों को झेलती हैं। वर्तमान समय में इस तथ्य को मेरे द्वारा हरियाणा राज्य में मनरेगा जैसी नीतियों के संदर्भ में प्राथमिक सर्वेक्षण के माध्यम से परखा गया है जहाँ मनरेगा के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रखी गयी है। जिसमें महिलाएँ नीतियों और कार्यक्रम के कार्यान्वयन व महिलाओं के कल्याण में सकारात्मक भूमिका निभा सकती हैं। मनरेगा में महिला सरपंचों की भूमिका महिलाओं के कल्याण में महत्वपूर्ण हो सकती है। इस परिस्थिति में परिवर्तन न सिर्फ महिलाओं के कल्याण के लिए आवश्यक है बल्कि नीतियों की सफलता के लिए भी आवश्यक है।

Author
रिंकी,
सहायक प्रोफेसर, राजनीतिक विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.3

Price: 251

लैंगिक न्याय एंव पुलिस प्रशासन

By: शिवानी सिंह

Page No : 39-54

Abstract
"नार्यस्तु राष्ट्रस्य स्वः," स्त्री राष्ट्र का भविष्य होती है। एक राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की भूमिका अतुलनीय है। भारतीय संविधान ने पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता का अधिकार प्रदान किया है। समाज में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस बल की व्यवस्था की गई है। पुलिस बल में महिलाओं की आवश्यकता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुषों की है। पिछले कुछ वर्षों में पुलिस बल में महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आये हैं किंतु ये परिवर्तन पर्याप्त नहीं हैं। आज हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं और इस युग की महिलाएं हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। अब वह रूढ़ीवादी परम्पराओं, सामाजिक कुरीतियों और पितृसत्तात्मक का खुलकर विरोध कर रहीं हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश वर्तमान समय में भी उनकी स्थिति दयनीय ही बनी हुई है। प्राचीन समय में पुलिस बल में महिलाओं को इसलिए प्रवेश नहीं दिया जाता था क्योंकि उन्हें कमजोर, कोमल और इस पेशे के लिए शारीरिक रूप से अनुपयुक्त माना जाता था। स्वतंत्रता के पश्चात् भी उच्च पदों (आई.पी.एस) पर प्रवेश के लिए दशकों लग गए। तत्पश्चात् 1973 में किरण बेदी ने अपने अथक प्रयास और संघर्ष के बाद उच्च पदों पर महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। विशेष रूप से पुलिस विभाग में महिलाओं की स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में 48.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। 2022 में ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल दो लाख 15 हजार 504 महिला पुलिस कर्मचारी है जो संपूर्ण पुलिस बल का मात्र 10.03 प्रतिशत ही है।

Author
शिवानी सिंह,
शोध छात्रा, लोक प्रशासन विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.4

Price: 251

भारत के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे को सुव्यवस्थित करने एवं भविष्य की चुनौतियों से लड़ने हेतु व्यापक सुधारों की जरूरत

By: विनोद कुमार त्रिवेदी

Page No : 55-75

Abstract
किसी भी राष्ट्र की स्थिरता और सुरक्षा तथा उसकी विकास और आर्थिक प्रगति के बीच एक घनिष्ठ संबंध मौजूद रहता है। समृद्धि और आर्थिक विस्तार के लिए एक स्थिर और मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र आवश्यक है क्योंकि कोई भी देश अस्थिर वातावरण में विकास और उन्नति नहीं कर सकता। यदि हम भारत के सुरक्षा तंत्र की बात करें तो पाएंगे कि यहाँ एक बहुत ही जटिल आंतरिक सुरक्षा संरचना अस्तित्व में है, जिसमें कई एजेंसियां समान तरह के कार्य कर रही हैं और साथ ही, यह आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों की एक विस्तृत श्रृंखला का सामना भी कर रही है। जिसमें मुख्यतः देश के समक्ष मौजूद सुरक्षा चुनौतियों जैसे आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद और अंतर-सांप्रदायिक संघर्ष जैसे पारंपरिक खतरों से लेकर प्रौद्योगिकी और वैश्वीकरण की प्रगति द्वारा लाई गई नए युग की चुनौतियाँ जैसे साइबर सुरक्षा, डिजिटल युद्ध, डीपफेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित चुनौतियाँं, सोशल मीडिया पर गलत सूचना से लेकर प्रौद्योगिकी-आधारित जासूसी तक सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त पर्यावरण और जलवायु संबंधी चुनौतियाँ, आपदा प्रबंधन, ऊर्जा, खाद्य और जल सुरक्षा, स्वास्थ्य और महामारी, जैविक और परमाणु खतरे, संसाधन आवंटन तथा जातीय और भाषाई संघर्ष जैसी समकालीन उभरती जटिलताएं कुछ ऐसी हैं जो भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए समान रूप से खतरनाक हैं। ये चुनौतियाँं गतिशील प्रकृति की हैं जिनसे निपटने हेतु समय रहते रणनीतिक सोच और अनुकूलनीय नीतियों के साथ राष्ट्र की व्यापक आंतरिक सुरक्षा संरचना पर काम करने की जरूरत हैं। इस हेतु देश के उपलब्ध सुरक्षा संसाधनों के पुनर्गठन और पुनः आवंटन के माध्यम से देश का एक कॉम्पैक्ट, एकीकृत और भविष्योन्मुख आंतरिक सुरक्षा ढाँचा तैयार किया जाए जिससे कि भारत की आंतरिक सुरक्षा को मजबूती प्रदान की जा सके एवं देश में उपलब्ध सुरक्षा संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग संभव हो सके। यह आंतरिक सुरक्षा सुधारों और अन्य प्रमुख देशों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं (Best Practices) को अपनाते हुए मौजूदा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है। 2047 के लिए भारत सरकार के दृष्टिकोण के अनुसार एक सुरक्षित, समृद्ध और विकसित राष्ट्र सुनिश्चित करने के लिए एक एकीकृत आंतरिक सुरक्षा तंत्र स्थापित करने के लिए समान तरह से कार्य कर पाने में सक्षम संस्थानों एवं बलों के एकीकरण एवं पुनर्गठन के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा तंत्र को मितव्ययी और चुस्त बनाने की आवश्यकता हैं।

Author
विनोद कुमार त्रिवेदी,
रिसर्च स्कॉलर और ग्रुप ए अधिकारी सीआरपीएफ कैडर (2005 बैच) वर्तमान में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्यरत हैं।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.5

Price: 251

भारत में महिला सशक्तिकरण की दिशा एवं दशाः हरियाणा प्रदेश के संदर्भ में एक समीक्षा

By: राजबीर सिंह दलाल , संदीप ढिल्लों

Page No : 76-91

Abstract
प्रस्तुत शोध पत्र महिला सशक्तिकरण के बहुआयामी मुद्दे पर गहन चर्चा करता है और लोकतांत्रिक युग में इसके महत्व पर प्रकाश डालता है। लोकतांत्रिक प्रगति महिलाओं और अन्य हाशिए पर पड़े समूहों की सक्रिय भागीदारी से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ऐतिहासिक रूप से, महिलाओं की भूमिका में उतार-चढ़ाव रहा है। प्राचीन काल में सापेक्ष समानता की पेशकश की गई थी, जो विभिन्न सामाजिक-धार्मिक मानदंडों के कारण समय के साथ खराब होती गई। प्रस्तुत शोध विशेष रूप से हरियाणा प्रदेश पर केंद्रित है। आर्थिक प्रगति के बावजूद राज्य में लिंग असमानताओं को देखा सकता हैं। भारत में सबसे कम महिला लिंग अनुपात, उच्च मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के सामने आने वाली व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को प्रदेश में देखा जा सकता हैं। निष्कर्ष महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में धीमे लेकिन सकारात्मक बदलाव, महिलाओं में अधिकारों के प्रति जागरूकता में वृद्धि और दमनकारी परंपराओं में धीरे-धीरे कमी दर्शाते हैं। हालाँकि, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक बहसों और राजनीतिक संगठनों में उनकी भागीदारी में महत्वपूर्ण अंतर अभी भी बना हुआ है। अध्ययन में हरियाणा में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए बेहतर रणनीतियों और नीतिगत हस्तक्षेपों की माँग की गई है, जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और गहरी जड़ें जमाए हुए पितृसत्तात्मक मानदंडों को खत्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

Authors
राजबीर सिहं दलाल, विभागाध्यक्ष, राजनीतिक विज्ञान विभाग, चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा, हरियाणा।
संदीप ढिल्लों, सहायक प्राध्यापक, राजनीतिक विज्ञान विभाग, चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जींद, हरियाणा।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.6

Price: 251

भारतीय प्रशासनिक परिदृश्य पर वैश्वीकरण का प्रभाव

By: स्वाति सुचारिता नंदा , राकेश कुमार मीना

Page No : 92-107

Abstract
यह शोधपत्र लोक प्रशासन पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर केंद्रित है। भारतीय समाज और राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर वैश्वीकरण के प्रभावों का अध्ययन करना आम बात है। हालाँकि, भारतीय प्रशासन पर वैश्वीकरण के प्रभावों को अभी भी ठीक से प्रलेखित नहीं किया गया है, भले ही इसके प्रभाव संरचना और कार्यों दोनों के संदर्भ में दूरगामी रहे हों। संरचनात्मक परिवर्तनों के बीच, वैश्वीकरण ने नई इकाइयाँ शुरू की हैं जो भारतीय प्रशासन को इसके पारंपरिक हस्तक्षेपवादी संगठन से नियामक प्रकृति की ओर ले जाती हैं। कार्यात्मक रूप से सार्वजनिक निजी भागीदारी के युग ने कई ऐसे कार्य लाए हैं, जो लाभ को उद्देश्य के रूप में शामिल करने की दिशा में कल्याणकारी ढाँचे से बहुत आगे निकल गए हैं। इसने प्रशासनिक पारिस्थितिकी तंत्र में और भी गहरे बदलाव किए हैं क्योंकि ‘प्रशासक-नागरिक’ संबंध ‘प्रबंधक-ग्राहक’ संबंध में बदल गया है। वर्तमान शोधपत्र प्रशासनिक परिदृश्य में उन परिवर्तनों पर चर्चा करने पर केंद्रित है जो भारत द्वारा 1990 के दशक की शुरुआत में नई आर्थिक नीति को अपनाने के बाद से हुए हैं।

Authors
स्वाति सुचारिता नंदा, एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, डीएवी पीजी कॉलेज, वाराणसी।
राकेश कुमार मीना, सहायक प्रोफेसर, शहीद भगत सिंह कॉलेज, नई दिल्ली।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.7

Price: 251

गाँधी जी और अहिंसा का अनुसरण

By: प्रीति चाहल

Page No : 108-116

Abstract
गाँधीजी ने सत्य को ईश्वर के समकक्ष रखा है और उसे प्राप्त करने का साधन अहिंसा बताया इस अहिंसा के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही रूपों की उन्होंने व्याख्या की है। नकारात्मक रूप में तो यह किसी भी जीव को पीड़ा नहीं पहुँचाना है। तो सकारात्मक रूप में यह मनुष्य को क्या करना चाहिए का निर्देश देता है। अर्थात् यह ’मानव प्रेम’ को बढ़ावा देता है। बाइबिल के वाक्यों को दोहराते प्रेम को बढ़ावा देता है। बाइबिल के वाक्यों को दोहराते हुए गाँधी कहते हैं “पाप से घृणा करे, पापी से नहीं।“ अर्थात् अपने चरित्र बल द्वारा वे विरोधियों या अन्यायियों के ’हृदय परिवर्तन’ पर बल देते हैं। अहिंसा को और भी व्यापक रूप से समझाते हुए उन्होंने कहा है कि, किसी को कष्ट पहुँचाने का विचार या किसी का बुरा चाहना भी हिंसा है। किसी के प्रति घृणा या द्वेष का भाव रखना भी हिंसा है। आवश्यकता से अधिक वस्तु ग्रहण करना तथा पर्यावरण में किसी तरह का गन्दगी या प्रदूषण फैलाना भी अहिंसा है“।
       गाँधी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अहिंसा निर्बल व्यक्ति का आश्रय नहीं, वरन् शक्तिशाली का अस्त्र है। विरोध के शान्ति से डर जाना या अत्याचार के विरूद्ध बल प्रयोग न कर पाना अहिंसा नहीं वरन् यह नैतिक दृष्टि से शक्तिशाली व्यक्ति या समूह का बल है जो सत्य पर दृढ़ निष्ठा से प्राप्त होता है। इसका सबसे अच्छा साधन ’सत्याग्रह’ है गाँधीजी ने कहा कि सत्याग्रही कभी पराजय स्वीकार नहीं करते। सत्य की सिद्धि कठिन तो है, परन्तु अनन्तः सत्य की ही विजय होती है - ’सत्यमेव जयते नामृताम’। इसके साथ ही गाँधीजी ने अहिंसात्मक संघर्ष और सत्याग्रह को मिलाकर ’सविनय अवज्ञा’ आंदोलन की संकल्पना को भी प्रतिपादित किया था।
         ईश्वर अथवा एक सर्वव्यापी आध्यात्मिक सत्ता में विश्वास गाँधी का मूल तत्व है। अपने जीव में वे टाल्सटाँय, रस्किन, थोरी, स्वामी विवेकानन्द, गोखले जैसे व्यक्तियों से अपने जीवन में प्रभावित थे। उनका कहना था कि जीवन का अंतिम लक्ष्य आत्मानुभूति है। गाँधीजी के अनुसार आत्मानुभूति का अभिप्राय ईश्वर को आमने सामने देखना है, अर्थात् चरम सत्य महसूस करना है, जिसे अपने आप को भी मानना कहा जा सकता है। उनका यह भी विश्वास था कि इसे तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता जब तक मनुष्य सम्पूर्ण मनुष्य जाति में स्वयं को न ला सके। इसमें अनिवार्यतः राजनीति भी सम्मिलित है।

Author
प्रीति चाहल,
एसोसिएट प्रोफेसर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.8

Price: 251

उत्तराखंड राजनीति एवं महिला उत्थान - एक विश्लेषण

By: अनामिका चौहान

Page No : 117-132

Abstract
उत्तराखंड में महिलाओं के उत्थान की प्रक्रिया समय के साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बदलावों को लेकर सामने आई है। राज्य की महिलाएँ अपनी पारंपरिक सीमाओं को पार करते हुए विभिन्न आंदोलनों और संगठनों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। चिपको आंदोलन, जिसमें महिलाओं ने जंगलों की रक्षा के लिए संघर्ष किया, एक प्रमुख उदाहरण है, जिसने न केवल पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की भूमिका को उजागर किया, बल्कि उन्हें सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता के नए आयाम दिए। इसके अलावा, पंचायत चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, विशेष रूप से 73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण, उनके राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुए हैं। उत्तराखंड में महिलाओं को अब भी कई सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे पितृसत्तात्मक समाज, शिक्षा की कमी, और आर्थिक निर्भरता। फिर भी, महिलाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और स्वरोजगार के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। राज्य में महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न अभियान, जैसे “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ“ और “महिला सुरक्षा अभियान“, ने महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद की है। इस लेख में उत्तराखंड में महिला उत्थान की प्रक्रिया और इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।

Author
अनामिका चौहान,
सहायक प्रोफेसर, चमनलाल महाविद्यालय, लंढौरा, हरिद्वार, उत्तराखंड।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.9

Price: 251

मतदान व्यवहार और उसके विभिन्न दृष्टिकोणों का अध्ययन- सैद्धांतिक विश्लेषण

By: राकेश कुमार , विकास तिवारी

Page No : 133-146

Abstract
चुनाव लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं, इसलिए नागरिकों का मतदान व्यवहार अधिक महत्व रखता है। क्योंकि यह व्यवहार ही प्रतिनिधि लोकतंत्र में सत्ता मिलने या खोने का निर्धारण करता है। इसलिए मतदान व्यवहार को सभी राजनीतिक अभ्यासों का केंद्र बिंदु माना जाता है। मतदान व्यवहार का अध्ययन अब अध्ययन के क्षेत्र में स्वतंत्र विषय के रूप में देखा जाता है। सामाजिक दबावों, आर्थिक लाभ, मनोवैज्ञानिक सुझावों और सबसे बढ़कर, चुनाव अभियान के प्रभाव ने मतदान के निर्णय लेने की प्रक्रिया को एक व्यापक रूप से जटिल गतिविधि बना दिया है। मतदान को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक मतदान व्यवहार का निर्माण करते है जिसे अध्ययन करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण को अपनाया जाता है। इस अध्ययन का मुख्य उदेश्य उन दृष्टिकोणों को समझना है जिसके तहत मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन के लिए विश्लेषणात्मक अध्ययन पद्धति को अपनाया गया है। इस अध्ययन में मतदान व्यवहार के सैद्धांतिक दृष्टिकोण पर चर्चा की गई है।

Authors
राकेश कुमार, शोध छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ।
विकास तिवारी, शोध छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ।
 

DOI : https://doi.org/10.32381/LP.2024.16.04.10

Price: 251

Instruction to the Author

आलेख में सामग्री को इस क्रम में व्यवस्थित करेंः आलेख के शीर्षक, लेखकों के नाम, पते और ई-मेल, लेखकों का परिचय, सार संक्षेप, (abstract) संकेत शब्द, परिचर्चा, निष्कर्ष/सारांश, आभार (यदि आवश्यक हो तो) और संदर्भ सूची । 

सारसंक्षेपः सारसंक्षेप (abstract) में लगभग 100-150 शब्द होने चाहिए, तथा इसमें आलेख के मुख्य तर्को का संक्षिप्त ब्यौरा हो। साथ ही 4-6 मुख्य शब्द (Keywords) भी चिन्हित करें । 

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टेबुल और ग्राफः टेबुल के लिए वर्ड में टेबुल बनाने की दी गई सुविधा का इस्तेमाल करें या उसे excel में बनाएं। हर ग्राफ की मूल एक्सेल कॉपी या जिस सॉफ़्टवेयर मैं उसे तैयार किया गया हो उसकी मूल प्रति अवश्य भेजे  सभी टेबुल और ग्राफ को एक स्पष्ट संख्या और शीर्षक दें। आलेख के मूल पाठ में टेबुल और ग्राफ की संख्या का समुचित जगह पर उल्लेख (जैसे देखें टेबुल 1 या ग्राफ 1) अवश्य करें। 

चित्राः सभी चित्र का रिजोलुशन कम से कम 300 डीपीआई/1500 पिक्सेल होना चाहिए। अगर उसे कही और से लिया गया हो तो जरूरी अनुमति लेने की जिम्मेदारी लेखक की होगी।

वर्तनीः किसी भी वर्तनी के लिए पहली और प्रमुख बात है एकरूपता। एक ही शब्द को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से नहीं लिखा जाना चाहिए। इसमें प्रचलन और तकनीकी सुविधा दोनों का ही ध्यान रखा जाना चाहिए।

• नासिक उच्चारण वाले शब्दों में आधा न् या म् की जगह बिंदी/अनुस्वार का प्रयोग करें। उदाहरणार्थ, संबंध के बजाय संबंध, सम्पूर्ण की जगह संपूर्ण लिखें। 

• अनुनासिक उच्चारण वाले शब्दों में चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करें। मसलन, वहाँ, आये , जाएंगे, महिलाएं, आदि-आदि। कई बार सिर्फ बिंदी के इस्तेमाल से अर्थ बदल जाते हैं। इसलिए इसका विशेष ध्यान रखें, उदाहरण के लिए हंस और हँस। 

• जहाँ संयुक्ताक्षरों मौजूद हों और प्रचलन में हों वहाँ उन संयुक्ताक्षरों का भरसक प्रयोग करें। 

• महत्व और तत्व ही लिखें, महत्व या तत्व नहीं। 

• जिस अक्षर के लिए हिंदी वर्णमाला में अलग अक्षर मौजूद हो, उसी अक्षर का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए, गए गयी की जगह गए, गई लिखें। 

• कई मामलों में दो शब्दों को पढ़ते समय मिलाकर पढ़ा जाता है उन्हें एक शब्द के रूप् में ही लिखें। उदाहरण के लिए, घरवाली, अखबारवाला, सब्जीवाली, गाँववाले, खासकर, इत्यादि। 

• पर कई बार दो शब्दों को मिलाकर पढ़ते के बावजूद उन्हें जोड़ने के लिए हाइफन का प्रयोग होता है। खासकर सा या सी और जैसा या जैसी के मामले में। उदाहरण के लिए,एक-सा, बहुत-सी, भारत-जैसा, गांधी-जैसी, इत्यादि। 

• अरबी या फारसी से लिए गए शब्दों में जहाँ मूल भाषा में नुक्ते का इस्तेमाल होता है। वहाँ नुक्ता जरूर लगाएं। ध्यान रहें कि क, ख, ग, ज, फ वाले शब्दों में नुक्ते का इस्तेमाल होताहै। मसलन, कलम, कानून, खत, ख्वाब, खैर, गलत, गैर इलरजत, इजाफा, फर्ज, सिर्फ। 

उद्धरणः पाठ के अंदर उद्धृत वाक्यांशों को दोहरे उद्धरण चिह्न (’ ’) के अंदर दें। अगर उद्धृत अंश दो-तीन वाक्यों से ज्यादा लंबा  हो तो उसे अलग पैरा में दें। ऐसा उद्धृत पैराग्राफ अलग नजर आए इसके लिए उसके पहले बाद में एक लाइन का स्पेस दें और पूरा पैरा को इंडेंट करें और उसके टाइप साईज को छोटा रखें। उद्धृत अंश में लेखन की शैली और वर्तनी में कोई तबदीली या सुधार न करें । 

पादटिप्पणी और हवाला (साईटेशन):  सभी पादटिप्प्णियाँ और हवालों (साईटेशन) के लिए मूल पाठ में 1,2,3,4,..... सिलसिलेवार संख्या दे और आलेख के अंत में क्रम में दे। वेबसाईट के मामले में उस तारीख का भी जिक्र करे जब अपने उसे देखा हो। मसलन, पाठ 1, मनोरंजन महंती, 2002, पृष्ठ और हर हवाला के लिए पूरा संदर्भ आलेख के अंत में दें।

सन्दर्भ: इस सूची में किसी भी संदर्भ का अनुवाद करके न लिखें, अथार्थ संदर्भो को उनकी मूल भाषा में रहने दें। यदि संदर्भ हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं के हो तो पहले हिन्दी वाले संदर्भ लिखें तथा इन्हें हिन्दी वर्णमाला के अनुसार, और बाद में अंग्रेजी वाले संदर्भ को अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सूचीबद्ध करें । 

•ए.पी.ए. स्टाइल फोलो करें। 

•मौलिकताः ध्यान रखें कि आलेख किसी अन्य जगह पहले प्रकाशित नहीं हुआ हो तथा न ही अन्य भाषा में प्रकाशित आलेख का अनुवाद हो। यानी आपका आलेख मौलिक रूप से लिखा गया हो। 

•कोशिश होगी कि इसमें शामिल ज्यादातर आलेख मूल रूप से हिंदी में लिखे गए हो । लेखकों से अपेक्षा होगी कि वे दूसरे किसी लेखक के विचारों और रचनाओं का सम्मान करते हुए ऐसे हर उद्धरण के लिए समुचित हवाला/संदर्भ देंगे ।अकादमिक जगत के भीतर बिना हवाला दिए नकल या दूसरों के लेखन और विचारों को अपना बताने (प्लेजियरिज्म) की बढ़ती प्रवृत्ति देखते हुए लेखकों का इस बारे मे विशेष ध्यान देना होगा । 

•समीक्षा और स्वीकृतिः प्रकाशन के लिए भेजी गयी रचनाओं पर अंतिम निर्णय लेने के पहले संपादक मडंल दो समीक्षकों की राय लेगा, अगर समीक्षक आलेख मे सुधार की माँग करें तो लेखक को उन पर गौर करना होगा।

•संपादन व सुधार का अंतिम अधिकार संपादकगण के पास सुरक्षित हैं। 

•कापीराइटः प्रकाशन का कापीराइट लेखक के पास ही रहेगा पर हर रूप में उसका प्रकाशन का अधिकार आई आई पी ए के पास होगा। वे अपने प्रकाशित आलेख का उपयोग अपनी लिखी किताब या खुद संपादित किताब मे आभार और पूरे संदर्भ के साथ कर सकते हैं। किसी दूसरे द्वारा संपादित किताब में शामिल करने की स्वीकृति देने के पहले उन्हें आई आई पी ए से अनुमति लेनी होगी।
 

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